NEELAM GUPTA

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लेखनी कहानी -04-Jan-2022 हमारे संकल्प

दिन से रात ,रात से दिन.. बदलते समय के साथ पूरे तीन सौ पैंसठ दिन पूरे होते हुए साल भर बीत जाता है।जैसे सूर्य अपनी रश्मियो के साथ प्रतिदिन सुबह को सियाह अंधेरे को चीरती हुई ,धरती को अपने प्रकाश से प्रकाशमान करता है।उसी प्रकार मानव भी नये उत्साह के साथ अपने जीवन काल मे संकल्प लेता है । अपने जीवन में उजाला भरने के लिए ,लेकिन उसका मन बहुत चंचल है।वह बहुत भ्रमित करता है ।कुछ ही मनुष्य अपने संकल्प पर दृढ़तापूर्वक पूरा कर पाते है।


अपनी यथाशक्ति द्वारा अपनी इंद्रियों पर काबू रखना संकल्प कहलाता है। संकल्प हमारी जीवन को नई दिशा देता है ,एक नयी राह सुझाता है, हमारा विकास करता है, मुश्किलों में हमें जीना सिखाता है। हमारे शास्त्रों में पूजा के किसी भी कार्य में संकल्प करना जरूरी है। इंसान अपनी आत्मा से जब संकल्प करता है तो उस पर खरा उतरता है। अपने को साक्षी रख इंसान अपने आप से संकल्प करता है।


हम साधारण मनुष्य केवल अपने बारे में सोचते है और अपने लिए ही कुछ करने का संकल्प करता है।जैसे मै अबकी बार डाईट फोलो कर अपना वजन घटाऊँगी।किसी का दिल नहीं दुखाऊँगी।

अपने लिए लडूँगी।गुस्सा नहीं करूंगी।इसी प्रकार न जाने क्या क्या प्रण करते है।लेकिन ये सब बाते धरी रह जाती है ।जिस तरह की स्थिति इंसान के सामने बनती है ।इंसान उसी के अनुरूप व्यवहार करता है।


भीष्म पितामह के संकल्प के बारे में तो सभी जानते हैं ।उन्होंने अपनी मृत्यु शैया पर भी अपना संकल्प निभाया ।कर्ण जैसा कर्मनिष्ठ दानवीर ही अपना संकल्प पूरा कर सकता है।युधिष्ठिर जैसा राजा जिसने भी ना झूठ बोलने का संकल्प लिया  लेकिन परिस्थितियों में फसकर  एक बार उसको झूठ बोलना ही पड़ा ।

जब इंसान संकल्प लेता है तो उसकी परीक्षा लेने के लिए तो प्रभु भी बार-बार धरती पर उतर आते हैं ।विक्रमादित्य जैसा राजा हो या  पन्ना धाए जैसी मां। वही अपने संकल्प पर उत्तम उतरता है जब एक साधारण इंसान जब अपना संकल्प हर परिस्थितियों में ही पूरा करता है,तभी उसकी जिंदगी सफल और सार्थक होती है। प्रभु भी उसके संकल्प में तब उसका साथ देते हैं । सकरात्मक ऊर्जा चारों दशाओं से मिलने लगती है।


आज की परिस्थितिवश इन दो सालों से करोना ने इंसान को भयभीत कर ,सही दिशा दिखाई ।सख्ती पूर्वक दिशानिर्देश का पालन करना सिखाया।इस महामारी मे कम खर्च में घर चलाना सिखाया ।रिश्तो की अहमियत बताई, दूर होकर रिश्ते निभाए । 

प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लिया।जिस सुंदरता को मानव संसाधन ने अपने विकास के लिए खुद ही नष्ट कर दिया है। अपने रहन-सहन के तरीके और आज के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके । कहीं ट्रैफिक की विषैली हवा से वायु प्रदूषण फैल गया है और कहीं ध्वनि प्रदूषण से लोगों में बीमारियां फैल गई हैं ।आधुनिक जीवन को हर कोई अपनाना चाहता है ,लेकिन इसके साथ-साथ सबकी शारीरिक क्षमता घटती जा रही है। ""संतोष की भावना, त्याग की भावना, इंसान में खत्म होती जा रही है जितना मिलता है और मिलने की चाहत रखता है""


इस माहौल मे कोई भी संकल्प ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाता। बदलती परिस्थितियों के बीच इंसान भी बदलता रहता है ,उसके हालात भी, और उसी हालातों के साथ इंसान तालमेल बिठाते हुए अपने कार्य की सिद्धि करता है। कब जिंदगी में नया कार्य आ जाए खुद इंसान को नहीं पता तो कैसे आगे की जिंदगी के बारे में वह फैसला कर सकता है । बदलते सालों के साथ इंसान के संकल्प भी बदलते हैं आज कुछ अलग संकल्प है तो कल कुछ होगा इन्हीं के बीच इंसान फस कर रह जाता है।


लेकिन इन सबके बीच में इंसान को इतना तो जरूर सोचना चाहिए कि वह कम से कम अपने फायदे के लिए किसी को नुकसान नहीं पहुंचा है जानबूझकर किसी का दिल ना दुखाए जितना हो सकता है दूसरों की आर्थिक मदद करें अपने शारीरिक शक्ति द्वारा परेशानी होने पर दूसरों की मदद करें अपना भोजन संयम रखें संतुलित भोजन से शरीर स्वस्थ रहता है। मेहनत जरूर करें उसका फल तो भगवान देगा लेकिन इंसान के हाथ में मेहनत करना है वह जरूर करें।


और जहां तक मेरी संकल्प की बात है मैं इस साल कुछ नया लिखना चाहती हूं, कब तक मुकम्मल होगा यह तो नहीं कह सकती, लेकिन हां कुछ जरूर नया करना चाहती हूं ।कुछ सीखना चाहती हूं और उसे औरों के विचारों को पढ़ जिंदगी अपनी संतुष्ट करना चाहती हूं। 


पहले केवल कविताएं ही लिखती थी धीरे-धीरे कहानी भी लिखनी शुरू कर दी है इसी तरह धीरे-धीरे आगे बढ़ना चाहती हूं ,अपने अंदर ठहराव लाना चाहती हूं। एक निश्चित अवधि लेकर ही अपना संकल्प लेना चाहिए ।जिससे उस अवधि में हम उस संकल्प को पूरा कर सकें। जैसे दिन निश्चित करके चलें, कि इस  दिन हमें यह सब कार्य निपटाने हैं और समय अनुसार हम अपने कार्य कर सकें। समय अवधि रहती है तो कार्य समय से पूरा हो जाता है उससे हमारी तरह शक्ति बढ़ती है और हमारे संकल्प लेने की शक्ति भी।


भगवान पर भरोसा है मुझको लेकिन मैं जरूरत से ज्यादा पूजा पाठ नहीं कर सकती क्योंकि भगवान तो हमारे हृदय में रहते हैं हमेशा हमारे पास। बच्चे बड़े हो रहे हैं बस वह सेटल हो जाए अपनी अपनी लाइफ में और उससे बड़ा संकल्प मेरा कोई नहीं है उन्हीं के अनुसार थोड़ा चलना है। उनकी खुशी में ही मेरी खुशी है। 


मुश्किलें राहों में बहुत हैं ।

हमे संभल संभल के चलना है।

गुलाब हमको मिले ना मिले,

हमको कांटों पर चलना है।

मोह ,माया ममता का डेरा,

संकल्प पूरा करने में बाधा बनता है।

लगन हो पूरी ,हो आस्था पूरी।

अपनी कमजोरी से हमको उभरना है।



नीलम गुप्ता नजरिया दिल्ली





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3 Comments

Seema Priyadarshini sahay

07-Jan-2022 10:59 PM

बहुत ही शानदार लेखन

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Wah mam apne bahut shandar likha hai👌👌 apne snklp ka arth jivn me mhtv, koi bhi sankalp hmare jivan pr kisa prabhav dalta hai..sankalp kin paristhitiyon me tikta hai...kul milakr sabklp k bare me apne sab kuch hi likh diya... Aur sath hi aapne apne nye sal k sankalpon ka bhi bahut acche se jikr kiya mam👌👌 shandar lekh hai apka sanklp👏👏

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Simran Bhagat

04-Jan-2022 04:20 PM

Very good

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